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न्यायालय के बारे में
सन् 1818 के पूर्व सिवनी क्षेत्र मराठी (नागपुर के भौंसले राजा) के राज्य में था। भौंसलों के समय रायट कोर्ट (कमावीसदार) एवं जमीदार पटेल न्याय दान का कार्य करते थे। कमावीसदार या तो स्वयं निर्णय लेते थे या न्याय पंचायतों को निर्णय हेतु मामले सौंप देते थे। पटेलों को दीवानी मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं था। ग्राम या क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को पंचायत को सिविल मामले निपटाने का अधिकार था, इसकी लिखित व्यवस्था नहीं थी। बाद में रायट अधिकारियों ने निर्णय लेखन प्रारम्भ किया। इन निर्णयों की अपील राजा सुनते थे।
सन् 1818 में सिवनी जिला ‘ईस्ट इंडिया कंपनी‘ के अन्तर्गत आया। सन् 1818 से 1861 तक आर्थिक मामले सिविल कोर्ट के न्यायाधीश व्दारा सुलझाये जाते थे। ‘सी.पी.एडमिनिस्ट््रेटिव रिपोर्ट, 1882‘ के अनुसार सिवनी जिले में भी पिं्रसिपल सदर अमीन एवं मुंसिफ की तैनाती इस हेतु थी।
सन् 1861 मंे सेंट््रल प्राविन्स (मध्यप्रांत) का गठन ब्रिटिश सरकार व्दारा किये जाने के पश्चात् पिं्रसिपल सदर अमीन, सदर अमीन एवं मुंसिफों के पद समाप्त कर दिये गये तथा ‘सिविल प्रोसिजर कोड, 1859 लागू कर दिया गया। प्रत्येक जिले में एक डेपुटी कमिश्नर, प्रत्येक तहसील (अनुभाग) में सहायक डेपुटी कमिश्नर, तहसीलदार एवं नायब तहसीलदार के न्यायालय स्थापित किये गये। संभाग स्तर[...]
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